श्रुति मण्डल : एक स्वर यज्ञ
संगीत संस्कारों को परिष्कृत करता है, मन की मलिनता का प्रक्षालन कर उसे निर्मल बनाता है, चंचल एवं विचलित चित्त को शांति एवं सुकून देता है। यह आत्मा का भोजन है और हमारी हिंसक प्रवृत्ति का शमन कर सद्वृतियों का विकास कर अनुशासित एवं सुसंस्कृत बनाता है। संगीत एक दूसरे को जोडकर सौहार्द का वातावरण बनाता है तथा जीवन को सरस, समरस बनाकर उसे लय प्रदान करता है। तभी तो कहा गया है-
साहित्य संगीत कला विहीन :
साक्षात् पशु-पुच्छ विषाण हीन :
साक्षात् पशु-पुच्छ विषाण हीन :
अर्थात् साहित्य, संगीत और कला से विहीन व्यक्ति बिना सींग और पूंछ के पशु के समान है। इसी संगीत से जन-जन को जो‹डकर उन्हें सुसंस्कृत बनाने तथा संगीत-नृत्य की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को संरक्षण प्रदान कर उसे जनोन्मुखी बनाने की दृष्टि से जयपुर के युवा एवं उत्साही कलाकारों और संगीत रसिकों ने 11 सितम्बर, 1955 को ‘राजस्थान तरुण कलाकार परिषद ‘ की स्थापना की। संगीत, नृत्य और नाट्य के माध्यम से सांस्कृतिक पुनरुत्थान के लक्ष्य को लेकर गठित इस संस्था का महान नाट्य एवं सिने कलाकार पृथ्वीराज कपूर ने उद्घाटन किया। जयपुर आकाशवाणी के विनायक रामचन्द्र अठावले, तत्कालीन शिक्षा मंत्री, बृज सुन्दर शर्मा, विधानसभा सचिव, मंसाराम पुरोहित, सुगम संगीत के कलाकार जी.एस. शेषनारायण, बांसुरीवादक कर्मवीर माथुर, कौशल भार्गव, मेघराज मुकुल, महीपत राय शर्मा, वायलिनवादक वीरेश्वर दयाल माथुर, कस्तूर मल शाह, जगरूप सहाय माथुर,पंडित जीवनलाल मट्टू, सितारवादक शशिमोहन भट्ट, कथक नर्तक बाबूलाल पाटनी तथा सरोदवादक बलवंत जोशी इस संस्था के संस्थापक सदस्य थे।