Call Us: 0141-2570428-31

History

श्रुति मण्डल : एक स्वर यज्ञ

संगीत संस्कारों को परिष्कृत करता है, मन की मलिनता का प्रक्षालन कर उसे निर्मल बनाता है, चंचल एवं विचलित चित्त को शांति एवं सुकून देता है। यह आत्मा का भोजन है और हमारी हिंसक प्रवृत्ति का शमन कर सद्वृतियों का विकास कर अनुशासित एवं सुसंस्कृत बनाता है। संगीत एक दूसरे को जोडकर सौहार्द का वातावरण बनाता है तथा जीवन को सरस, समरस बनाकर उसे लय प्रदान करता है। तभी तो कहा गया है-
साहित्य संगीत कला विहीन :
साक्षात् पशु-पुच्छ विषाण हीन :
अर्थात् साहित्य, संगीत और कला से विहीन व्यक्ति बिना सींग और पूंछ के पशु के समान है। इसी संगीत से जन-जन को जो‹डकर उन्हें सुसंस्कृत बनाने तथा संगीत-नृत्य की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को संरक्षण प्रदान कर उसे जनोन्मुखी बनाने की दृष्टि से जयपुर के युवा एवं उत्साही कलाकारों और संगीत रसिकों ने 11 सितम्बर, 1955 को ‘राजस्थान तरुण कलाकार परिषद ‘ की स्थापना की। संगीत, नृत्य और नाट्य के माध्यम से सांस्कृतिक पुनरुत्थान के लक्ष्य को लेकर गठित इस संस्था का महान नाट्य एवं सिने कलाकार पृथ्वीराज कपूर ने उद्घाटन किया। जयपुर आकाशवाणी के विनायक रामचन्द्र अठावले, तत्कालीन शिक्षा मंत्री, बृज सुन्दर शर्मा, विधानसभा सचिव, मंसाराम पुरोहित, सुगम संगीत के कलाकार जी.एस. शेषनारायण, बांसुरीवादक कर्मवीर माथुर, कौशल भार्गव, मेघराज मुकुल, महीपत राय शर्मा, वायलिनवादक वीरेश्वर दयाल माथुर, कस्तूर मल शाह, जगरूप सहाय माथुर,पंडित जीवनलाल मट्टू, सितारवादक शशिमोहन भट्ट, कथक नर्तक बाबूलाल पाटनी तथा सरोदवादक बलवंत जोशी इस संस्था के संस्थापक सदस्य थे।

तरुण कलाकार परिषद् की प्रथम कार्यकारिणी, सन् 1955

बायें से दायें बैठे हुए : श्री वीरेश्वर दयाल माथुर, श्री लिमये, श्री विनायक रामचन्द्र अठावले, श्री मंसाराम पुरोहित, श्री कर्मवीर माथुर
खडे हुए बायें से दायें : श्री मुकुन्दलाल नकरा, श्री डेविड, श्री शेषनारायण, श्री बाबूलाल पाटनी, श्री हरिश्चन्द्र माथुर, श्री कौशल भार्गव, श्री महीपत राय शर्मा, श्री प्रताप व्यास
इसके अतिरिक्त नसीर जहीरुद्दीन डागर, नसीर फैयाजुद्दीन डागर (डागर बन्धु), मनमोहन भट्ट एवं उनका परिवार, तत्कालीन सैशन जज एवं शायर आनंद नारायण कौल, दानसिंह, महारानी गायत्री देवी स्कूल की अध्यापिका बेंजामिन, रत्नमाला मांडे के अलावा मिस वली, जनक गोरवानी और हरिश्चन्द्र माथुर आदि कुछ ऐसे विशिष्ट व्यक्तित्व थे जो इस परिषद से जुडे हुए थे। यद्यपि व्यक्तिगत स्तर पर तरुण कलाकार परिषद की भूमिका सन् 1951 में उस समय से ही प्रारम्भ हो गई थी जब स्थानीय कलाकारों ने बाहर से आये कुछ कलाकारों के साथ मिल-बैठकर संगीत के आयोजन शुरू कर दिए थे किन्तु परिषद की नियमित गतिविधियां सन् 1955 से प्रारम्भ हुर्इं।
परिषद की स्थापना के समय मंसाराम पुरोहित को अध्यक्ष, एन.बी. गोरवानी को उपाध्यक्ष, महीपत राय शर्मा को सचिव, जी.एस. शेषनारायण को कोषाध्यक्ष और कर्मवीर माथुर को संगठन मंत्री बनाया गया। कुछ समय बाद महीपत राय शर्मा मुम्बई चले गये और कर्मवीर माथुर राजस्थान संगीत नाटक अकादमी में चले गये तो परिषद को भी पुनर्गठित करना पडा। फलस्वरूप ब्रज सुन्दर शर्मा को अध्यक्ष, वीरेश्वर दयाल माथुर को उपाध्यक्ष, शाह कस्तूरमल को कोषाध्यक्ष, कर्मवीर माथुर को मंत्री और जी.एस. शेषनारायण को संगठन मंत्री का दायित्व सौंपा गया। यह कार्यकारिणी सन् 1960 से 1963 तक कार्यरत रही। वर्ष 1963-1964 में अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और कोषाध्यक्ष तो वही रहे किन्तु जी.एस. शेषनारायण को मंत्री तथा कौशल भार्गव को संगठन मंत्री बना दिया गया।
परिषद की स्थापना के दो वर्ष बाद 7 अक्टूबर, 1957 को सोसायटी पंजीकरण अधिनियम के अन्तर्गत इसका पंजीकरण हो गया। पंजीकरण के दो वर्ष बाद राजस्थान संगीत नाटक अकादमी, जोधपुर ने अपने विधान के तहत इसे अकादमी से सम्बद्ध कर लिया। फलस्वरूप अकादमी और परिषद ने आपसी ताल-मेल के साथ कार्य करना शुरू कर दिया। राजस्थान संगीत नाटक अकादमी के तत्कालीन अध्यक्ष गोवर्धन लाल काबरा परिषद के कार्यों से इतना प्रभावित हुए कि वे इसके आजीवन सदस्य बन गये।
तरुण कलाकार परिषद के गठन के बाद संगीत के नियमित आयोजन होने लगे। सन् 1955 में परिषद के उद्घाटन के समय हुए समारोह में सुप्रसिद्ध कलाकार पं. एस.एन. रातनजनकर का गायन और सुप्रसिद्ध सितारवादक इलियास खां का सितार वादन हुआ। स्थापना के बाद नियमित रूप से होने वाले संगीत आयोजनों में पं. विनायक राव पटवर्धन, नसीर जहीरुद्दीन खां एवं फैयाज़ जहीरुद्दीन खां, पद्मावती गोखले, सीता हीराबेट, हीराबाई ब‹डौदकर, इलियास खां, रत्नाकर व्यास, विनायक रामचन्द्र अठावले, बलवंत जोशी, श्रीमती लक्ष्मीशंकर, उस्ताद बिस्मिल्लाह खां, पंडित रविशंकर, गिरिजा देवी, डी.के. दातार आदि प्रसिद्ध कलाकारों ने अपने कार्यक्रम दिये।
इन ख्यातनाम कलाकारों की प्रस्तुतियों से जयपुर में संगीत रसिकों का एक वर्ग तैयार हो गया। संगीत के प्रति श्रोताओं की इस रुचि को देखकर परिषद ने राष्ट्रीय एवं अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त कलाकारों के कार्यक्रम आयोजित किये। अन्तरराष्ट्रीय सांस्कृतिक आदान-प्रदान के तहत अमेरिका के जॉन सैबेस्टियन एवं चीनी-रूसी सांस्कृतिक दलों के कार्यक्रमों का आयोजन हुआ। सैबेस्टियन के कार्यक्रम के साथ ही स्थानीय कलाकारों के कार्यक्रम भी हुए। इसी प्रकार नाटक आयोजनों की शृंखला में अनेक नाटक मंचित हुए जिनमें प्रभाकर माचवे का नाटक ‘जुआङ्क प्रमुख रूप से उल्लेखनीय है।
परिषद ने इन संगीत आयोजनों के अलावा कुछ स्थायी आयोजन भी प्रारम्भ किये। इन आयोजनों में पंडित विष्णु दिगम्बर पलुस्कर एवं पंडित विष्णु नारायण भातखण्डे जयंती समारोह, अखिल भारतीय संगीत सम्मेलन, अखिल राजस्थान संगीत-नृत्य प्रतियोगिता और नृत्य समारोह प्रमुख रूप से उल्लेखनीय हैं। सन् 1958 से प्रारम्भ पलुस्कर जयंती एवं भातखंडे जयंती समारोह सन् 1961 तक निरन्तर आयोजित होते रहे। इनमें शास्त्रीय संगीत के कार्यक्रम होते थे। परिषद ने राजस्थान संगीत नाटक अकादमी के तत्त्वावधान में 28 मार्च, 1959 को प्रथम अखिल भारतीय संगीत सम्मेलन का आयोजन किया। तीन दिवसीय यह समारोह जयपुर के राजकीय प्रवास भवन में आयोजित हुआ। महारानी गायत्री देवी ने सम्मेलन का उद्घाटन किया। इस सम्मेलन में एस.ए. महाडकर (गायन), पंडित रविशंकर (सितार), गिरिजादेवी (गायन), प्रकाश वढेरा (बांसुरी), बसवराज राजगुरु (गायन), शशिमोहन भट्ट (सितार), विनायक रामचन्द्र अठावले (गायन), डी.के. दातार (वायलिन), दामोदर लाल काबरा (सरोद) और उस्ताद अमीर खां (गायन) ने अपनी मोहक संगीत प्रस्तुतियों से जयपुर की जनता को मंत्रमुग्ध कर दिया।
दिसम्बर, 1959 में द्वितीय तथा मार्च, 1961 में तृतीय अखिल भारतीय संगीत सम्मेलन का आयोजन किया गया। तीन दिवसीय इस सम्मेलन में गुलाम मुस्तफा, उस्ताद बिस्मिल्लाह खां, माणिक वर्मा, लक्ष्मीशंकर, शरण रानी, पंडित हुसन लाल, इन्द्राणी रहमान, यामिनी कृष्णामूर्ति और कमला लक्ष्मण ने अपनी सशक्त प्रस्तुतियों से श्रोताओं और दर्शकों का मन मोह लिया। ये आयोजन सन् 1963 तक प्रतिवर्ष आयोजित होते रहे। इन आयोजनों से एक ओर जहां श्रोताओं को देश के जाने-माने कलाकारों को सुनने का अवसर मिला वहीं श्रोताओं को भारतीय शास्त्रीय संगीत की स्वस्थ एवं समृद्ध परम्पराओं से परिचित होने का अवसर भी मिला।
शास्त्रीय संगीत एवं नृत्य के प्रति रुचि जाग्रत कर नवोदित कलाकारों को प्रोत्साहित करने की दृष्टि से राजस्थान तरुण कलाकार परिषद ने 13 नवम्बर, 1959 को प्रथम अखिल राजस्थान संगीत एवं नृत्य प्रतियोगिता आयोजित कीŸ। तीन दिवसीय इस प्रतियोगिता में आयु के आधार पर प्रतियोगियों को दो वर्गों में विभक्त किया गया। प्रथम वर्ग में 12 से 15 वर्ष के विद्यार्थी तथा दूसरे वर्ग में 16 से 22 वर्ष तक के तरुण कलाकार सम्मिलित किये गये। परिषद ने राजस्थान संगीत नाटक अकादमी के तत्त्वावधान में 18 अगस्त, 1960 को द्वितीय अखिल राजस्थान संगीत एवं नृत्य प्रतियोगिता आयोजित की जिसमें शास्त्रीय, उपशास्त्रीय गायन, वाद्यवादन और कथक नृत्य की प्रतियोगिताएं हुर्इं।
सन् 1961 में तृतीय संगीत एवं नृत्य प्रतियोगिता तथा 9 मई, 1962 को चतुर्थ संगीत एवं नृत्य प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। इस तरह की प्रतियोगिताएं अलवर एवं सीकर आदि स्थानों पर भी आयोजित की गर्इं। संगीत एवं नृत्य की इस शृंखला में राजस्थान तरुण कलाकार परिषद द्वारा सितम्बर, 1963 में पांचवीं कडी के रूप में संगीत एवं नृत्य प्रतियोगिता आयोजित की गई। तीन दिवसीय इस प्रतियोगिता में शास्त्रीय एवं उपशास्त्रीय गायन, वाद्यवादन एवं नृत्य की प्रतियोगिताएं हुर्इं। ये प्रतियोगिताएं जयपुर के नवनिर्मित रवीन्द्र मंच पर हुर्इं। प्रतियोगिता के अंतिम दिन दिल्ली की कलाकार उमा शर्मा का कथक नृत्य हुआ। प्रतियोगिता में जयपुर क्षेत्र के 56 नवोदित कलाकारों ने भाग लिया। प्रतियोगिता में विजयी रहे कलाकार आज देश के ख्यातनाम कलाकार हैं।
संगीत एवं नृत्य के साथ-साथ नाट्य विधा को प्रोत्साहन देने के लिए सन् 1960 में तरुण कलाकार परिषद ने प्रथम नाट्य समारोह का आयोजन किया। इसमें परिषद सहित नगर की प्रमुख नाट्य संस्थाओं ने भाग लिया। आयोजन की सफलता से उत्साहित होकर परिषद ने नाट्य समारोह को भी अपना स्थायी आयोजन बना लिया। फलस्वरूप नगर की ही नहीं वरन सम्पूर्ण राजस्थान की प्रमुख नाट्य संस्थाओं ने इस नाट्य समारोह में भाग लेना शुरू कर दिया। फरवरी, 1963 में परिषद ने नाटक ‘नेफा लद्दाख हमारा है’ का मंचन किया जो महेश टीचर्स ट्रेनिग कॉलेज, जोधपुर के कलाकारों की प्रस्तुति थी। इन नाट्य समारोहों का ही परिणाम है कि आज जयपुर में बहुत सी संस्थाएं नाट्य क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य कर रही हैं। इस प्रकार परिषद विभिन्न कार्यक्रम आयोजित करती रही लेकिन वांछित आर्थिक सहयोग न मिलने के कारण इस तरह के आयोजनों के संचालन में बाधा उत्पन्न होने लगी। इस संकट से निपटने के लिए परिषद ने जहां राष्ट्रीय स्तर के कलाकारों को एक साथ न बुलाकर अलग-अलग बुलाना प्रारम्भ किया वहीं आयोजनों में प्रवेश शुल्क भी रखा जाने लगा। इन आयोजनों के अलावा परिषद ने कला संगम कार्यक्रम भी आयोजित किये जो प्रादेशिक भाषाओं के भक्ति संगीत व लोक संगीत पर आधारित होते थे। तरुण कलाकार परिषद ने नृत्य नाटिकाओं का भी आयोजन किया। इस कार्यक्रम के तहत सन् 1960 में बम्बई की प्रमुख संस्था ‘लिटिल बैले ट्रुप’ द्वारा नृत्य नाटिकाओं का प्रदर्शन किया गया। जयपुर के राजकीय प्रवास भवन में आयोजित इस कार्यक्रम में ‘रामायण, ‘गांव का मेला’ और ‘पंच तंत्र’ नृत्य नाटिकाओं को बडी प्रशंसा मिली।
सन् 1961 में रामनिवास बाग के बाल उद्यान में नृत्य समारोह का आयोजन किया गया। इसके लिए परिषद ने भारतीय कला केन्द्र, दिल्ली को आमंत्रित किया और 21 अप्रैल से 24 अप्रैल तक आयोजित इस समारोह में ‘रामलीला’ नृत्य नाटिका का प्रदर्शन किया गया। वर्ष 1960-61 में ही परिषद ने गायक कमल सिंह का ठुमरी गायन कार्यक्रम रखा।
भारत सरकार की अन्तर्राज्यीय सांस्कृतिक आदान-प्रदान योजना के अन्तर्गत राजस्थान संगीत नाटक अकादमी ने उडीसा एवं मद्रास के सांस्कृतिक दलों को जयपुर आमंत्रित किया। इस कार्यक्रम का सम्पूर्ण दायित्व परिषद ने संभाला। दो दिवसीय यह कार्यक्रम नवम्बर, 1963 में रवीन्द्र मंच पर आयोजित किया गया जिसमें शास्त्रीय व लोक नृत्य प्रस्तुत किये गये। सन् 1964 में लक्ष्मी शंकर, विनायक रामचन्द्र अठावले का गायन एवं रानी कर्णा का कथक नृत्य आयोजित किया गया। रानी कर्णा का कार्यक्रम 9 मई, 1964 को रवीन्द्र मंच पर आयोजित हुआ।
राजस्थान तरुण कलाकार परिषद ने विभिन्न कार्यक्रमों के आयोजन के साथ ही नूपुर नृत्य संस्था की स्थापना की। राजस्थान संगीत नाटक अकादमी के तत्त्वावधान में राजस्थान तरुण कलाकार परिषद ने अमेच्योर आर्टिस्ट एसोसिएशन के सहयोग से जयपुर में प्रथम ग्रीष्मकालीन नृत्य प्रशिक्षण शिविर का आयोजन किया। पहला प्रशिक्षण शिविर सन् 1963 में रवीन्द्र मंच पर आयोजित हुआ और उसके बाद प्रतिवर्ष यहीं आयोजित होता रहा। यह प्रशिक्षण नि:शुल्क दिया जाता था। इस शिविर में नृत्य गुरु कुन्दन लाल गंगानी के निर्देशन में प्रशिक्षण दिया जाता था। इससे पूर्व गंगानी जी जोधपुर के गोवर्धन लाल काबरा द्वारा कथक नृत्य शैली को विशेष रूप से विकसित करने के उद्देश्य से खोले गये संगीत विद्यालय में नियुक्त थे। परिषद के अनुरोध पर वे जयपुर आये और नृत्य प्रशिक्षण शिविरों के संचालन का दायित्व सम्भाला। उनके निर्देशन में संचालित नूपुर नृत्य संस्था में कथक एवं लोक नृत्य के लिए प्रायोगिक पद्धति अपनाई गई। प्रसिद्ध नृत्यांगना प्रेरणा श्रीमाली ने कथक की प्रारम्भिक शिक्षा इसी संस्था में गुरु कुंदन लाल गंगानी से प्राप्त की थीŸ। तरुण कलाकार परिषद ने मैक्समूलर भवन, दिल्ली, राजस्थान संगीत नाटक अकादमी, राजस्थान सरकार एवं त्रिमूर्ति इत्यादि के साथ मिलकर अनेक जयपुर कला मेले आयोजित किये जिनका राजस्थान के कला इतिहास में विशिष्ट स्थान और बहुत ब‹डा महत्त्व रहा है।

श्रुति मण्डल का गठन

राजस्थान तरुण कलाकार परिषद जन साधारण में संगीत, नृत्य और नाट्य की शास्त्रीय विधाओं का प्रचार-प्रसार कर उनके प्रति जनता की रुचि जाग्रत कर सुधी श्रोता और दर्शक तैयार करने का कार्य तो कर रही थी किन्तु परिषद के समक्ष सदैव आर्थिक संकट बना रहता था। आर्थिक सम्बल न मिलने के कारण कार्यक्रमों की निरन्तरता बनाए रखना कठिन हो रहा था। फलस्वरूप यह महसूस किया गया कि जब तक संस्था आर्थिक दृष्टि से स्वावलम्बी नहीं होगी तब तक संगीत के नियमित आयोजन संभव नहीं हो सकेंगे और नियमित कार्यक्रमों के अभाव में सुधी श्रोताओं और दर्शकों की संख्या में भी अभिवृद्धि नहीं होगी। उन्हीं दिनों दिल्ली में डॉ. बी. वी. केसकर के घर पर श्रुति मण्डल के नाम से संगीत गोष्ठियों के कार्यक्रम आयोजित होते थे। राजस्थान तरुण कलाकार परिषद के संगठन मंत्री कौशल भार्गव एवं विनायक रामचन्द्र अठावले को केसकर के घर होने वाली इन संगीत गोष्ठियों में जाने का अवसर मिला। कौशल जी उस संगीत गोष्ठी से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने श्रोताओं का संगठन तैयार करने के लिए परिषद के समक्ष इस तरह की गोष्ठियां आयोजित करने का प्रस्ताव रख दिया। परिषद भी आर्थिक स्वावलम्बन के आधार पर संगीत के प्रचार-प्रसार के लिए संस्था स्थापित करने पर विचार कर रही थी अत: अपनी कल्पना को साकार करने के लिए श्रुति मण्डल की स्थापना करने का निर्णय लिया।
प्रारम्भ में राजस्थान तरुण कलाकार परिषद ने अपनी एक शाखा के रूप में श्रुति मण्डल की स्थापना की और यह संस्था परिषद के ही मूल उद्देश्यों को व्यापक स्तर पर क्रियान्वित करने के लिए सक्रिय हुई। तरुण कलाकार परिषद ने श्रुति मण्डल के गठन की कल्पना को साकार करने के लिए सर्वप्रथम सुप्रसिद्ध सितारवादक पंडित रविशंकर से आग्रह किया। संगीत के क्षेत्र में परिषद के कार्यों और श्रुति मण्डल की कल्पना से पंडित जी को बडी प्रसन्नता हुई। उन्होंने सहर्ष जयपुर आना स्वीकार कर लिया। इस प्रकार 17 अगस्त, 1964 को श्रुति मण्डल की स्थापना की गई। इसका विधिवत उद्घाटन राजस्थान के तत्कालीन राज्यपाल डॉ. सम्पूर्णानंद ने किया और जयपुर में सर्वप्रथम श्रुति मण्डल के मंच पर पंडित रविशंकर का सितारवादन हुआ। शास्त्रीय संगीत के इस कार्यक्रम ने जयपुर में संगीत की समृद्ध परम्परा के विकास के द्वार खोल दिये। श्रुति मण्डल की स्थापना तो सन् 1964 में हो गई किन्तु राजस्थान सोसायटी एक्ट अधिनियम के अन्तर्गत इसका पंजीकरण 29 नवम्बर, 1978 को ही हो पाया।
श्रुति मण्डल की स्थापना के बाद राजस्थान तरुण कलाकार परिषद ने श्रुति मण्डल को नियमित एवं अनुशासित ढंग से चलाने हेतु परिषद कार्यकारिणी के निर्देशन में ‘श्रुति मण्डल उपसमिति’ का गठन किया। रावल रघुवीर सिंह बिसाऊ को उसका संयोजक एवं ए.सी. मुखर्जी को कोषाध्यक्ष बनाया गया जबकि चन्द्रगुप्त वाष्र्णेय, शाह कस्तूरमल, डॉ. आर.एस. माथुर, जी.एस. शेषनारायण, एन.एन. भटनागर और कौशल भार्गव आदि इसके सदस्य बनाए गए। सन् 1964 से लेकर सन् 1972 तक इस उपसमिति द्वारा ही श्रुति मण्डल का संचालन होता रहा। वर्ष 1973-74 में श्रुति मण्डल कार्यकारिणी समिति का गठन किया गया जिसमें प्रकाश सुराना को अध्यक्ष, विजय वर्मा को उपाध्यक्ष, कौशल भार्गव को संगठन मंत्री और जी.एस. शेषनारायण को मंत्री बनाया गया जबकि सुमेर चन्द सोनी को कोषाध्यक्ष बनाया गया। दो वर्ष पश्चात् वर्ष 1975-76 में मण्डल कार्यकारिणी का पुनर्गठन किया गया जिसमें प्रकाश सुराना को अध्यक्ष, रघु सिन्हा को उपाध्यक्ष और कौशल भार्गव को संगठन मंत्री बनाया गया। विजय प्रताप को सहमंत्री तथा जी.एस. शेषनारायण को कोषाध्यक्ष बनाया गया। संगठन मंत्री कौशल भार्गव की मृत्यु के पश्चात् विजय प्रताप को संस्था का सचिव बनाया गया। वर्तमान में सुधांशु पाण्डेय इस संस्था के सचिव हैं।

श्रुति मण्डल के उद्देश्य एवं कार्य

1. श्रोताओं एवं दर्शकों में शास्त्रीय संगीत के प्रति रुचि जाग्रत करना ।.
2. संगीत, नृत्य के विकास के लिए कला में रुचि रखने वाले सभी लोगों को प्रोत्साहन एवं संरक्षण देना।
3. सांस्कृतिक अधिवेशन, सम्मेलन, सेमिनार, विचार गोष्ठी, प्रदर्शनी और सांस्कृतिक गतिविधियां जैसे – संगीत सभाएं, संगीत व नृत्य के कार्यक्रम आयोजित करना।
4. शास्त्रीय संगीत व नृत्य, लोक संगीत एवं ललित कलाओं में अध्ययन, शिक्षण,अध्यापन, प्रशिक्षण एवं शोधकार्य हेतु प्रोत्साहन देना।
5. मूर्धन्य कलाकारों को जयपुर में आमंत्रित कर उनकी कलात्मक प्रस्तुतियों का आयोजन कराना।
6. नवोदित कलाकरों को प्रोत्साहन देना और उनको प्रकाश में लाना।
7. शास्त्रीय कला के अन्तर्गत सैद्धान्तिक रूप से संगीत विज्ञान एवं नृत्य विज्ञान को बढावा देना।
8. संस्था द्वारा व्यवसायी एवं अव्यवसायी कलाकारों को उनकी योग्यता के अनुसार मान्यता देना एवं पुरस्कार प्रदान करना।
9. राजस्थान एवं राजस्थान के बाहर की विभिन्न संस्थाओं एवं लोगों को शास्त्रीय संगीत व नृत्य के प्रचार का अभियान चलाने के लिए प्रोत्साहन एवं सहयोग देना।
10. संगीत एवं नृत्य से सम्बन्धित श्रव्य-दृश्य (ऑडियो-वीडियो) कैसेट संग्रहालय तथा एक कला संग्रहालय की स्थापना करना।
11. संगीत व नृत्य के विषय में शोध करने वाले छात्रों को उनके शोध विषय से सम्बन्धित सामग्री उपलब्ध कराने के लिए कैसेट एवं पुस्तकों की लाइब्रेरी बनाना।

शास्त्रीय संगीत सभाएं

श्रुति मण्डल की पहली शास्त्रीय संगीत सभा उसकी स्थापना के अवसर पर 17 अगस्त, 1964 को हुई जिसमें सितार सम्राट पंडित रविशंकर ने जयपुर की जनता को शास्त्रीय संगीत की स्वस्थ एवं समृद्ध परम्परा से परिचय करवाया तथा सितार के स्वरों की अनूठी स्वर सलिल प्रवाहित की। उनके साथ तबले पर संगत कनाई दत्त ने की। श्रुति मण्डल का दूसरा कार्यक्रम 2 जनवरी, 1965 को हुआ जिसमें ए. कानन और मालविका कानन का शास्त्रीय गायन हुआ। इस शृंखला में 17 फरवरी, 1965 को सुप्रसिद्ध सितारवादक निखिल बनर्जी का सितार वादन हुआ जिसमें तबले पर उनकी संगत चतुरलाल ने की। इसी वर्ष श्रुति मण्डल द्वारा एक और संगीत सभा आयोजित की गई जिसमें अमरनाथ का गायन तथा नंदलाल घोष का सरोद वादन हुआ।
श्रुति मण्डल द्वारा 21 अगस्त, 1965 को आयोजित एक संगीत सभा में पंडित भीमसेन जोशी का गायन और शिशिरकणा धर चौधरी का वायलिन वादन हुआ। तबले पर इनकी संगत कलकत्ता के महापुरुष मिश्र ने की। यद्यपि सन् 1965 में पाकिस्तान के आक्रमण और फिर लाल बहादुर शास्त्री ने निधन के कारण मण्डल के कार्यक्रम समय पर आयोजित नहीं हो सके तथापि 28 नवम्बर, 1965 को उस्ताद बिस्मिल्लाह खां का शहनाई वादन हुआ। उसके बाद 5 दिसम्बर, 1965 को माणिक वर्मा का शास्त्रीय गायन हुआ। इसी प्रकार 26 जुलाई, 1966 को वी.जी.जोग का वायलिन वादन और सामता प्रसाद का तबला वादन आयोजित किया गया। 9 अगस्त, 1966 को बम्बई की सुप्रसिद्ध ठुमरी गायिका लक्ष्मीशंकर व निर्मला देवी का गायन हुआ। इस संगीत सभा में खयाल, ठुमरी की जुगलबंदी, गजल और भजन भी प्रस्तुत किये गये। श्रुति मण्डल द्वारा आयोजित संगीत सभाओं की परम्परा में 27 सितम्बर, 1966 को रवीन्द्र मंच पर पंडित भीमसेन जोशी का गायन हुआ। इसी शृंखला में 22 अक्टूबर, 1967 को रवीन्द्र मंच पर भारत के प्रसिद्ध सिने संगीत निर्देशक हुसन लाल का वायलिन वादन एवं ठुमरी गायन हुआ। इसके बाद पशुपति नाथ मिश्र एवं अमरनाथ मिश्र (वाराणसी) का गायन हुआ।
रवीन्द्र मंच पर ही 1 दिसम्बर, 1967 को वाराणसी विश्वविद्यालय के डॉ. रामू प्रसाद शास्त्री का वायलिन वादन हुआ। श्रुति मण्डल द्वारा आयोजित शास्त्रीय संगीत के कार्यक्रमों में 25 जनवरी, 1968 को रवीन्द्र मंच पर उस्ताद बिस्मिल्लाह खां के शिष्य विष्णु प्रसन्ना (वाराणसी) का शहनाई वादन, राजस्थान विश्वविद्यालय के संगीत विभाग की अध्यक्ष लीलावती अडसुले का खयाल व ठुमरी गायन हुआ। डॉ. आर.पी. शास्त्री का वायलिन वादन, मणि प्रसाद (दिल्ली) का खयाल गायन और रघुनाथ मिश्र (वाराणसी) का तबला वादन हुआ। कार्यक्रम के अन्त में यामिनी कृष्णामूर्ति का नृत्य हुआ। रवीन्द्र मंच पर 16 अगस्त, 1969 को आयोजित संगीत सभा में सुप्रसिद्ध सरोदवादक अमजद अली खान का सरोद वादन एवं सुप्रसिद्ध तबलावादक सामता प्रसाद (गुदई महाराज) का तबला वादन हुआ। 20 जुलाई, 1970 को पंडित भीमसेन जोशी के गायन से श्रुति मण्डल की उस वर्ष आयोजित होने वाली संगीत सभाओं का सिलसिला प्रारम्भ हुआ। इसके बाद दूसरी संगीत सभा में 28 अगस्त, 1970 को शहनाई एवं वायलिन की जुगलबंदी का कार्यक्रम आयोजित हुआ जिसमें विष्णु प्रसन्ना ने शहनाई वादन और डॉ. आर.पी. शास्त्री ने वायलिन वादन प्रस्तुत किया। तबले पर आनंद गोपाल बन्द्योपाध्याय ने संगत की। श्रुति मण्डल की कार्यकारिणी के सदस्य रघु सिन्हा के घर पर 8 अप्रैल, 1972 को गिरिजा देवी का सुगम एवं शास्त्रीय गायन हुआ। इसके बाद 15 अप्रैल, 1972 को श्रुति मण्डल द्वारा रवीन्द्र मंच पर आयोजित संगीत सभा में सुप्रसिद्ध बांसुरी वादक पंडित हरिप्रसाद चौरसिया का बांसुरी वादन हुआ।
उसी वर्ष 7 मई को रवीन्द्र मंच पर जितेन्द्र अभिषेकी का गायन हुआ। सन् 1972 में ही जयपुर में पहली बार आयोजित प्रात:कालीन सभा में कुमार गंधर्व का गायन हुआ। जयपुर में यह उनका पहला कार्यक्रम था। 13 अप्रैल, 1975 को श्रुति मण्डल द्वारा ‘तानसेन जयंती समारोह’ आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम का उद्घाटन उस्ताद नसीर जहीरुद्दीन खां एवं फैयाज़ जहीरुद्दीन खां डागर ने किया। डागर बन्धु एवं उस्ताद सईदुद्दीन डागर ने ध्रुवपद गायन पेश किया। इस सभा के दूसरे कलाकारों में उस्ताद असद अली खां ने रुद्र वीणा तथा गोपाल दास ने पखावज के गंभीर स्वरों से संगीत रसिकों को आहृादित कर दिया। यह समारोह रवीन्द्र मंच पर सम्पन्न हुआ। यद्यपि वर्ष 1976 में शास्त्रीय गायन-वादन के कार्यक्रम नहीं हो पाये किन्तु श्रुति मण्डल द्वारा प्रस्तुत ‘धरती धोरां री’ नाट्य रूपक ने दर्शकों का मन मोह लिया। सन् 1977 में ‘सुराना स्मृति समारोह’ एवं ‘जयपुर समारोह’ जैसे बडे आयोजनों का प्रारम्भ हुआ। इसके बाद 27 अगस्त, 1977 को श्रुति मण्डल द्वारा शास्त्रीय संगीत के कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसमें सुप्रसिद्ध गायिका किशोरी अमोणकर का शास्त्रीय गायन हुआ।
team-man2
वर्ष 1980 में सुराना स्मृति समारोह व अखिल भारतीय संगीत सम्मेलन आदि के कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। तत्पश्चात् 23 अगस्त, 1981 को स्थानीय राजमंदिर छविगृह में उस्ताद बिस्मिल्लाह खां का शहनाई वादन हुआ। यह आयोजन ‘श्रुति मण्डल रिलीफ ट्रस्ट’ नाम से आयोजित किया गया और इससे प्राप्त धनराशि व दानदाताओं द्वारा दी गई धनराशि प्रदेश में बाढ पीड़ितों की सेवार्थ काम में ली गई। राजस्थान संगीत नाटक अकादमी के सौजन्य से श्रुति मण्डल द्वारा 25 मार्च, 1982 को रवीन्द्र मंच के पूर्वाभ्यास कक्ष में शास्त्रीय संगीत सभा आयोजित की गई जिसमें उ. नियाज अहमद व उ. फैयाज अहमद (बम्बई) का शास्त्रीय गायन हुआ। 21 अगस्त, 1982 को श्रुति मण्डल द्वारा रवीन्द्र मंच पर एक कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम का उद्घाटन राजस्थान के तत्कालीन राज्यपाल, ओ.पी. मेहरा ने किया। इस कार्यक्रम में सुप्रसिद्ध संतूर वादक पंडित शिवकुमार शर्मा ने अपने संतूर की स्वर लहरियों से श्रोताओं को रससिक्त कर दिया। इसी प्रकार 16 अगस्त, 1984 को रवीन्द्र मंच पर आयोजित कार्यक्रम में सुप्रसिद्ध सरोद वादक अमजद अली खां ने सरोद के सुरीले स्वरों से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। श्रुति मण्डल द्वारा 18 अगस्त, 1985 को भी एक संगीत सभा का आयोजन किया गया।
जयपुर के महारानी महाविद्यालय में 24 मई, 1986 को सविता देवी का गायन हुआ। तत्पश्चात् 16 अगस्त, 1986 को रवीन्द्र मंच पर पंडित रविशंकर की शिष्या सर्वजीत कौर (जालंधर) का सितार वादन हुआ। इसी प्रकार 16 अक्टूबर, 1986 को रवीन्द्र मंच पर आयोजित कार्यक्रम में शास्त्रीय गायन में उभरती गायिका वीणा सहस्रबुद्धे का शास्त्रीय गायन हुआ। इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि उस्ताद एन. अमीनुद्दीन खां डागर थे। इसी प्रकार 10 अगस्त, 1988 को रवीन्द्र मंच के पूर्वाभ्यास कक्ष में सरोद नवाज अली अकबर खां के विदेशी शिष्य केन जुकरमैन का सरोद वादन हुआ। सन् 1991 में श्रुति मण्डल ने शास्त्रीय संगीत की अनेक सभाएं आयोजित कीं जिसमें अगस्त, 1991 में अश्विनी भिडे का गायन, अक्टूबर में शाहिद परवेज का सितार वादन तथा दिसम्बर, 1991 में पूर्णिमा चौधरी का गायन हुआ। आगे चलकर 18 अगस्त, 1992 को बुद्धादित्य मुखर्जी का सितार व सुरबहार वादन तथा आरती अंकलेकर का शास्त्रीय गायन हुआ। इसके अतिरिक्त उस वर्ष गायन-वादन की अन्य सभाएं भी आयोजित हुर्इं। जनवरी, 1993 में वीणा सहस्रबुद्धे तथा अप्रैल, 1993 में श्रीकान्त बाकरे का गायन हुआ। अगस्त, 1993 में रोनू मजूमदार का बांसुरी वादन और अश्विनी भिडे का गायन हुआ। रोनू मजूमदार के साथ शुभंकर मुखर्जी एवं अश्विनी भिडे के साथ विश्वनाथ शिरोडकर ने तबला संगत की। यह कार्यक्रम श्रुति मण्डल द्वारा ‘अल्लादिया खां जन्म शताब्दी समारोह’ के रूप में आयोजित किया गया। इसके बाद 17 नवम्बर, 1993 को युवा कलाकारों को प्रोत्साहित करने के लिए संगीता शंकर का वायलिन वादन एवं मधुकर आनंद का कथक नृत्य हुआ।
25 मार्च, 1994 को विख्यात गायिका पूर्णिमा चौधरी तथा वृन्दा मुन्दकुर का शास्त्रीय गायन हुआ। सन् 1994 में सुप्रसिद्ध मोहन वीणा वादक पंडित विश्वमोहन भट्ट को ग्रेमी अवार्ड मिला। अत: उनके सम्मान में 20 सितम्बर, 1994 को बिड़ला सभागार में श्रुति मण्डल द्वारा एक कार्यक्रम आयोजित किया गया जिसमें उन्होंने मोहन वीणा की अनूठी प्रस्तुति से श्रोताओं को आनंदित कर दिया। आयोजनों की इस शृंखला में 26 फरवरी,1995 को आयोजित संगीत सभा में सतीश व्यास का संतूर वादन व श्रुति साडोलिकर का शास्त्रीय गायन हुआ। शास्त्रीय संगीत की अगली सभा 20 सितम्बर, 1995 को बिड़ला सभागार में आयोजित हुई जिसमें पं. डी.के. दातार का वायलिन वादन हुआ। इसी प्रकार 31 अगस्त, 1996 को विकास गुप्ता का सितार वादन तथा सविता देवी का ठुमरी गायन हुआ। उसी वर्ष 1 सितम्बर, 1996 को तरुण भट्टाचार्य का संतूर वादन तथा पंडित मोहन लाल मिश्रा का शास्त्रीय गायन हुआ। सन् 1998 में श्रुति मण्डल एवं वेल्कम ग्रुप राजपूताना पैलेस शेरेटन के संयुक्त तत्वावधान में ठुमरी उत्सव आयोजित किया गया जिसमें 6 जुलाई, 1998 को कलकत्ता के शान्तनु भट्टाचार्य और बम्बई के वृन्दा मुन्दकुर तथा 7 जुलाई, 1998 को आरती अंकलेकर का गायन हुआ। आगे चलकर 24 व 25 अगस्त, 1998 को अश्विनी भिडे व विनायक तोरवी का गायन हुआ। श्रुति मण्डल द्वारा अक्टूबर में शरदोत्सव का आयोजन किया गया। रवीन्द्र मंच पर आयोजित इस दो दिवसीय आयोजन के पहले दिन 26 अक्टूबर, 1998 को मुम्बई के सुनील कान्त का गायन और 27 अक्टूबर, 1998 को धारवाड के कैवल्य कुमार का गायन हुआ।
श्रुति मण्डल द्वारा सन् 1999 में भी शास्त्रीय संगीत के अनेक कार्यक्रम आयोजित किये गये। आयोजनों की इस शृंखला में 7 अप्रैल, 1999 को रवीन्द्र मंच पर दो दिवसीय तरुण कलाकार समारोह आयोजित किया गया जिसमें पहले दिन जयपुर के सलिल भट्ट का मोहन वीणा वादन और दूसरे दिन कलकत्ता के कुमार मुखर्जी का गायन हुआ। अगस्त माह में दो दिवसीय उप शास्त्रीय संगीत समारोह आयोजित किया गया। रवीन्द्र मंच पर आयोजित इस समारोह में 19 अगस्त, 1999 को पूर्णिमा चौधरी का गायन और 20 अगस्त, 1999 को सविता देवी का गायन हुआ। सारंगी पर भारत भूषण और तबले पर बल्लू खां ने इनकी संगत की। उसी वर्ष अक्टूबर माह में रवीन्द्र मंच पर श्रुति मण्डल द्वारा शास्त्रीय संगीत सभा का आयोजन किया गया जिसमें जयपुर घराने की सुप्रसिद्ध गायिका श्रुति साडोलिकर का गायन हुआ। शास्त्रीय संगीत समारोहों की शृंखला में 18 जून, 2000 को आयोजित संगीत सभा में राकेश चौरसिया का बांसुरी वादन और 26 अगस्त, 2000 को गिरिजा देवी की शिष्या सुनन्दा तथा 27 अक्टूबर, 2000 को कुमार गंधर्व की पुत्री एवं शिष्या कलापिनी कोमकाली का गायन हुआ। शास्त्रीय संगीत के ये आयोजन सन् 2001 में भी अबाध रूप से जारी रहे। फलस्वरूप 26 फरवरी, 2001 को राजस्थान संगीत नाटक अकादमी, जोधपुर और श्रुति मण्डल के संयुक्त तत्त्वावधान में दो दिवसीय अखिल भारतीय संगीत नृत्य समारोह आयोजित किया गया जिसमें आसकरण शर्मा का गायन तथा दूसरे दिन माधवी मुद्गल द्वारा ओडिसी नृत्य प्रस्तुत किया गया। श्रुति मण्डल के सचिव और राजस्थान संगीत नाटक अकादमी के अध्यक्ष रहे कौशल भार्गव की पुण्य स्मृति में जवाहर कला केन्द्र में फरवरी, 2001 में भक्ति संगीत संध्या का आयोजन किया गया जिसमें अहमद हुसैन, मोहम्मद हुसैन, पंडित जगदीश शर्मा, चिरंजीलाल तंवर, सरस ब्रजवासी, डॉ. रजनी पाण्डेय, ईश्वरदत्त माथुर और मंजू शर्मा आदि कलाकारों ने भक्ति रचनाओं से अपनी संगीत श्रद्धांजलि दी। संगीत के आयोजनों को जारी रखते हुए श्रुति मण्डल द्वारा 6 अप्रैल, 2001 को राजपूताना पैलेस शेरेटन के संयुक्त तत्त्वावधान में आयोजित कार्यक्रम में वाणी जयराम का गायन हुआ। इसी प्रकार 31 जुलाई, 2001 को मीता पंडित और भोलानाथ मिश्र का गायन हुआ तथा 16 सितम्बर, 2001 को रवीन्द्र मंच पर आयोजित संगीत संध्या में अश्विनी भिडे देशपाण्डे का गायन हुआ। इसी प्रकार 2 नवम्बर, 2001 को रवीन्द्र मंच पर आयोजित शास्त्रीय संगीत संध्या में पंडित अजय चक्रवर्ती और कु. कौशिकी चक्रवर्ती का गायन हुआ।

शास्त्रीय नृत्य एवं नृत्य नाटिकाएं

श्रुति मण्डल द्वारा समय-समय पर शास्त्रीय नृत्य एवं विभिन्न नाटिकाओं के आयोजन भी किये गये। नृत्यांजलि कार्यक्रम के अन्तर्गत 4 अक्टूबर, 1964 को सुप्रसिद्ध नृत्यांगना इन्द्राणी रहमान ने भरतनाट्यम, कुचिपुडी एवं ओडिसी नृत्यों का प्रदर्शन किया। नृत्य कार्यक्रमों की शृंखला में यह श्रुति मण्डल का प्रथम आयोजन था। नृत्य के दूसरे आयोजन में इंडियन बैले थियेटर द्वारा 14 से 17 नवम्बर, 1964 तक ‘भारत दर्शन’ कार्यक्रम प्रदर्शित किया गया। राजस्थान संगीत नाटक अकादमी और श्रुति मण्डल के संयुक्त तत्त्वावधान में श्रुति मण्डल द्वारा शास्त्रीय नृत्य के कार्यक्रम का आयोजन किया गया। यह आयोजन 27 व 28 मार्च, 1965 को रवीन्द्र मंच पर सम्पन्न हुआ। इस कार्यक्रम में यामिनी कृष्णामूर्ति की भरतनाट्यम, ओडिसी एवं कुचिपुडी नृत्यों की प्रभावशाली प्रस्तुति ने दर्शकों को रोमांचित कर दिया। सन् 1966 में आयोजित नृत्य संध्या में 17 सितम्बर को झवेरी बहिनों-दर्शना, रंजना, नयना व सुवर्णा ने मणिपुरी नृत्य प्रस्तुत किया। श्रुति मण्डल द्वारा अगला नृत्य आयोजन 17 सितम्बर, 1966 को रवीन्द्र मंच पर आयोजित हुआ जिसमें बिरजू महाराज ने अपना मनमोहक नृत्य प्रस्तुत किया। अगले वर्ष 5 अगस्त, 1967 को स्थानीय रवीन्द्र मंच पर ही गोपीकृष्ण नृत्य दल का कथक नृत्य हुआ। इस सभा में गोपीकृष्ण एवं उनके साथियों ने नृत्य की प्रभावशाली प्रस्तुति दी।
श्रुति मण्डल द्वारा 28 नवम्बर, 1967 को जयपुर के रवीन्द्र रंग मंच पर कुमारी एस. कनक का भरतनाट्यम् व कुचिपुडी नृत्य का आयोजन किया गया। नृत्य आयोजनों की इस शृंखला में फरवरी, 1969 में सोनल मानसिंह का नृत्य आयोजित किया गया जिसमें उन्होंने भरतनाट्यम् व ओडिसी नृत्यों की आकर्षक प्रस्तुतियां दीं।
राजस्थान संगीत नाटक अकादमी एवं श्रुति मण्डल के संयुक्त तत्त्वावधान में आयोजित नृत्य संध्या में बम्बई की सुनयना ने मनोरम नृत्य प्रस्तुत किया। यह कार्यक्रम 2 सितम्बर, 1971 को रवीन्द्र मंच पर आयोजित हुआ। रवीन्द्र रंगमंच पर 11 अगस्त, 1973 को यामिनी कृष्णामूर्ति के भरतनाट्यम नृत्य का आयोजन किया गया। सन् 1975 में रवीन्द्र मंच पर सुवर्णामुखी (मद्रास) द्वारा भरतनाट्यम नृत्य प्रस्तुत किया गया। रवीन्द्र मंच पर 16 सितम्बर, 1977 को आयोजित कार्यक्रम में स्वप्न सुन्दरी ने कुचिपुडी नृत्य और 17 सितम्बर, 1977 को विजय कुमार ने कथक नृत्य प्रस्तुत किया। दोनों कलाकारों द्वारा कुचिपुडी व कथक नृत्य की मनोहारी जुगलबंदी भी प्रस्तुत की गई। इसी प्रकार 25 मार्च, 1978 की शाम रवीन्द्र मंच पर जयपुर घराने की उदीयमान नृत्यांगना अलका नूपुर का कथक नृत्य हुआ।
श्रुति मण्डल द्वारा 3 मई, 1982 को राजभवन, जयपुर में एक कार्यक्रम आयोजित किया गया जिसमें अमेरिका की शैरोन लोवेन ने ओडिसी नृत्य प्रस्तुत किया। शैरोन लोवेन का अगला कार्यक्रम 1 मार्च, 1984 को जयपुर के रवीन्द्र मंच पर आयोजित किया गया जिसमें उन्होंने ओडिसी नृत्य का प्रदर्शन किया। जयपुर के गोलछा प्रतिष्ठान के सौजन्य से रवीन्द्र मंच पर 14 सितम्बर, 1985 को ‘रामलीला’ नृत्य नाटिका का आयोजन किया। इसे भारतीय कला केन्द्र, दिल्ली के कलाकारों ने प्रस्तुत किया। रवीन्द्र रंगमंच पर ही 21 फरवरी, 1986 को श्रुति मण्डल द्वारा नृत्य संध्या आयोजित की गई जिसमें आनंदवल्ली शिवनाथन द्वारा भरतनाट्यम व कुचिपुडी नृत्य प्रस्तुत किया गया। इसी वर्ष 15 अक्टूबर, 1986 को रवीन्द्र मंच पर चित्रा विश्वेश्वरन (मद्रास) का भरतनाट्यम नृत्य प्रदर्शित किया गया। इसके अतिरिक्त श्रुति मण्डल द्वारा समय-समय पर शास्त्रीय नृत्य सभाएं आयोजित की जाती रहीं। जुलाई, 1992 में सारंग बहिनों, 7 मई, 2000 को कुमारी रश्मिसिंह का भरतनाट्यम और 25 अगस्त, 2001 को श्रीमती प्रतीशा सुरेश ने अपनी नृत्य प्रस्तुतियां दीं।

अखिल भारतीय संगीत सम्मेलन

श्रुति मण्डल ने अखिल भारतीय संगीत सम्मेलनों का आयोजन करके भी शास्त्रीय संगीत का प्रचार-प्रसार किया है। श्रुति मण्डल द्वारा प्रथम अखिल भारतीय संगीत सम्मेलन का आयोजन 25 जनवरी, 1968 को रवीन्द्र रंगमंच पर हुआ जिसमें विभिन्न प्रान्तों के तरुण कलाकारों ने भाग लिया।
इस समारोह की दूसरी कडी में ‘फेस्टिवल ऑफ म्यूजिक एण्ड डांस’ के नाम से 11 से 14 सितम्बर, 1969 तक रवीन्द्र मंच पर कार्यक्रम आयोजित किये गये। इस समारोह के प्रथम दिन 11 सितम्बर को विष्णु प्रसन्ना एवं साथियों का शहनाई वादन तथा 12 सितम्बर को सोनल मानसिंह का ओडिसी नृत्य और 13 सितम्बर को परवीन सुलताना एवं पंडित जगदीश प्रसाद का गायन हुआ। अंतिम दिन 14 सितम्बर को विष्णु प्रसन्ना व आर.पी. शास्त्री ने शहनाई व वायलिन की जुगलबंदी प्रस्तुत की। इनके साथ तबला संगत आनंद गोपाल बन्द्योपाध्याय ने की। इसी दिन लखनऊ घराने के प्रसिद्ध कथक नृत्य कलाकार बिरजू महाराज ने कथक नृत्य प्रस्तुत किया। इनके साथ तबला संगत किशन महाराज ने की।
सन् 1973 में 13 से 16 सितम्बर तक श्रुति मण्डल द्वारा चार दिवसीय संगीत समारोह आयोजित किया गया जिसमें कई सुप्रसिद्ध कलाकारों ने अपनी प्रस्तुतियां दीं। पहले दिन विष्णु प्रसन्ना का शहनाई वादन तथा पंडित भीमसेन जोशी का गायन हुआ। दूसरे दिन बलराम पाठक का सितार वादन तथा उस्ताद शराफत हुसैन खां (आगरा घराना) का गायन हुआ। तीसरे दिन पंडित जगदीश प्रसाद (नागपुर) का गायन एवं पंडित हरि प्रसाद चौरसिया का बांसुरी वादन हुआ। अंत में 16 सितम्बर को आसकरन शर्मा का गायन तथा दामोदर लाल काबरा का सरोद वादन हुआ।
कलाकारों के साथ तबले पर काशीनाथ मिश्रा (वाराणसी), आनंद गोपाल (वाराणसी) तथा निताई चक्रवर्ती (जोधपुर) ने संगत की। इसके बाद 4 से 6 मार्च, 1980 को स्थानीय रवीन्द्र मंच पर अखिल भारतीय संगीत सम्मेलन आयोजित किया गया जिसमें पंडित शिवकुमार शर्मा का संतूर वादन, वी.जी. जोग का वायलिन वादन, बृजभूषण काबरा का गिटार वादन, शाहिद परवेज का सितार वादन, गिरिजा देवी के गायन के अलावा मालविका कानन, दीपाली नाग, निवृत्ति बुआ सरनाइक, जाकिर हुसैन एवं आनंद गोपाल आदि कलाकारों ने अपनी-अपनी कला प्रस्तुति देकर इस शास्त्रीय संगीत सम्मेलन में चार चांद लगाए। इस समारोह के बाद भी समय-समय पर श्रुति मण्डल प्रतिष्ठित कलाकारों को जयपुर में आमंत्रित कर भारतीय संगीत सम्मेलनों का आयोजन करती रही है। इस तरह के संगीत समारोह शृंखला में 5 दिसम्बर, 1992 को राजमंदिर सभागार में रातभर चलने वाला संगीत समारोह विशेष रूप से उल्लेखनीय है जिसमें अमजद अली खां (सरोद), वीणा सहस्रबुद्धे (गायन), बिस्मिल्लाह खां (शहनाई), जाकिर हुसैन (तबला), वी.जी. जोग (वायलिन), बुद्धादित्य मुखर्जी (सितार) और श्रुति साडोलिकर का गायन हुआ। यह समारोह रात भर चला। जयपुर में अपनी तरह का यह पहला आयोजन था।